– नई पीढ़ी को निशुल्क सिखा रहे चित्रकला हम बात कर रहे हैं पेशे से शिक्षक व चित्रकार राठौड़ी कुआं निवासी प्रेमचंद सांखला की। जिनकी बनाई पेंटिंग को देश ही नहीं, अपितु विदेशों में भी सराहा गया है।
मेहनत से पाया मुकाम
किसान परिवार में पले बढे़ प्रेमचंद अपनी मेहनत और प्रतिभा के बल पर आज अच्छे मुकाम पर हैं। बचपन से ही पढऩे में होशियार रहे सांखला ने स्कूली शिक्षा शारदा बाल विद्यालय से पूरी की। इस दौरान अध्यापक मूलचंद सांखला से इन्हें चित्रकला के बारे में शुरुआती ज्ञान अर्जित हुआ। बाद में घनश्याम पाराशर व चित्रकार इलाहीबक्श खिलजी से प्रेरणा मिली और सांखला को चित्रकला से प्रेम प्रगाढ़ हो गया। आज वे अपने शौक को पूरा करने के लिए विभिन्न शैलियों में अपनी कला को निखारने में जुटे हैं। मिर्धा कॉलेज से बीएससी करने के बाद 1999 में इन्होंने बीएड किया और 2005 में कवलीसर में तृतीय श्रेणी अध्यापक के रूप में नियुक्ति पाई। लेकिन इनके कदम यहीं नहीं ठहरे। सांखला ने जीवाजी विश्वविद्यायल ग्वालियर से चित्रकला (ड्राइंग) विषय में एमए किया। विश्वविद्यालय की ओर से इन्हें गोल्ड मेडल से नवाजा गया। इसके बाद आरपीएससी से चयनित होकर 2017 में राजसमंद में ड्रांइग के व्याख्याता बने। वर्तमान में धुंधवालों की ढाणी अलाय के विद्यालय में भूगोल के व्याख्याता हैं। लेकिन पढ़ाई और सरकारी नौकरी को इन्होंने कभी अपने शौक के बीच बाधा नहीं बनने दिया।
चित्रकार के मनोभावों में जन्म लेती है कला सांखला का कहना है कि कला चित्रकार के मनोभावों में जन्म लेती है। यह मन की अचेतन अज्ञात गहराइयों से ही विकसित होती है। इन भावनाओं को साकार रूप में परिवर्तित करने में चित्र महत्वपूर्ण माध्यम है। भारत में चित्रकला का इतिहास बहुत पुराना हैं। पाषाण काल में मानव ने गुफा चित्रण करना शुरू कर दिया था। होशंगाबाद और भीमबेटका क्षेत्रों में कंदराओं और गुफाओं में मानव चित्रण के प्रमाण मिले हैं। इन चित्रों में शिकार, शिकार करते मानव समूहों, स्त्रियों तथा पशु-पक्षियों आदि के चित्र हैं। राजपूताना में मेवाड़, जयपुर, बीकानेर , मालवा , किशनगढ, बूंदी व अलवर की चित्रकला शैली खास है। उन्होंने बताया कि चित्रकला की दो आधुनिक शैली है रियलेस्टिक (मूर्त) व एबस्ट्रेक्टर (अमूर्त)। रियलेस्टिक में तस्वीर बोलती हुई नजर आती है तथा एबस्ट्रेक्टर में रंगों से छिपी प्रतिकृति को पहचानना पड़ता है। सिनेरी आदि नेचर (प्रकृति) पेटिंग में आती है।
राजस्थान की मांडणा कला को किया चित्रों में शामिल (फोटो-०४)
सांखला वर्तमान में राजस्थान की परम्परागत मांडणा कला को विश्व पटल पर लाने के उद्देश्य से अपने चित्रों में शामिल कर रहे हैं। इसके लिए केनवास पर गाय का गोबर लीपकर उस पर खडिय़ा व गेरू जैसे प्राकृतिक रंगों का उपयोग करते हैं। इन्होंने केनवास पर गोबर से आंगन लीप कर खडी से मांडणा बनाती महिला का चित्र बनाया है। जिसे देश के कई शहरों व विदेश में भी सराहा गया। साथ ही थ्रीडी पेंटिंग तैयार की है, जो कि दो तरह की आभासी व सजीवता वाली है। ऊंटों का रैला, पणिहारी व ऊंट पर सवार रायका इनकी चित्रकारी के प्रमुख पात्रों में हैं। मांडणा चित्रकारी को लेकर इनका कहना है कि यह सजह उपलब्ध रंग गेरू, खडी व गाय के गोबर से तैयार की जाती है। यह चित्रकारी राजस्थानी संस्कृति की आत्मा को दर्शाती है।
भोजपत्र पर अभिनव प्रयोग सांखला ने भोजपत्र पर चित्र बनाकर अपनी कला में अभिनव प्रयोग किया है। अमूमन वाटर, एक्रलिक व ऑयल कलर का प्रयोग होता है। इन्होंने भोजपत्र पर तैलीय रंगों से राजस्थानी विषय को छूता हुआ चित्र बनाया है।
तीन देशों की आर्ट गैलेरी में भेजी पेंटिंग
सांखला की बनाई पेंटिंग इटली, रूस व यूके की आर्ट गैलेरियों में प्रदर्शित हो चुकी है। आठ पेंटिंग इटली में आर्ट एकेडमी आर्टलिस की ओर से लगाई गई आर्ट गैलेरी में भेजी गई थी। इसी तरह तीन रूस के रोएन्डो निजी संग्राहलय व तीन पेंटिंग यूके के निजी संग्राहालय में प्रदर्शित की गई। साथ ही कर्नाटक, शिमला, दिल्ली , नागौर व जयपुर में स्वयं ने प्रदर्शनी लगाई है। यूके की ऑन लाइन आर्टगैलेरी प्लेजरा पर इनके द्वारा बनाई गए हरिण के बच्चे को दूध पिलाती महिला का चित्र करीब १२९ डालर में बिका। इनकी चित्रकारी के पात्र मुख्यतौर पर राजस्थानी संस्कृति से जुड़े होते हैं।
कोरोना काल में किया जागरूक सांखला ने कोरोना के समय दीवारों व सडक़ों पर रंगोली, पेंटिंग व वॉल पेंटिंग के माध्यम से लोगों को कोरोना के प्रति जागरूकता का संदेश दिया। उनके इस कार्य के लिए जिला कलक्टर ने सम्मानित भी किया। जिला स्टेडियम में इन्होंने दीवार पर खेलों से संबंधित पेंटिंग बनाई है। स्काउट के माध्यम से कैम्प लगाकर ये बच्चों को भी चितत्रकला को निशुल्क प्रशिक्षण देते हैं। अपनी कला के लिए कई बार राज्य व जिला स्तर पर सम्मानित हो चुके हैं।
युवाओं को संदेश सांखला का युवाओं के लिए संदेश हैं कि चित्रकला अच्छा क्षेत्र है। इससे व्यक्ति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सकता है। यह सबसे अच्छी हॉबी है। तनाव भरे माहौल में सुकून देती है। साथ आजीविका के रूप में भी अच्छा भविष्य है। लेकिन सरकारी स्तर पर यह उपेक्षित है। सरकार को आर्ट गैलेरी के माध्यम से चित्रकारों को प्लेटफार्म उपलब्ध कराना चाहिए। छोटी कक्षाओं से स्कूल में चित्रकला का पाठ्यक्र शुरू करना चाहिए। आज बच्चे ड्राइंग शीट को भूल से गए हैं।